उत्तराखंड : पहाड़ की बेटी ने आर्थिक तंगी के बावजूद नहीं मानी हार, संघर्षों के बूते हासिल किया नाम

आर्थिक तंगी के बावजूद बबीता रावत ने हार नहीं मानी और संघर्षों के बूते मुकाम हासिल कर पहाड़ की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गईं।


उत्तराखंड की बेटियां जबरदस्त प्रतिभा की धनी हैं, इस बात से हर कोई वाकिफ है। जरा सोचिए कि अगर इन बेटियों को सही सुविधाएं मिलने लगे तो ये ना जाने क्या कर दिखा दें। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गढ़वाल की बेटी बबीता रावत के बारे में जो कि रुद्रप्रयाग की रहने वाली हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद बबीता रावत ने हार नहीं मानी और संघर्षों के बूते मुकाम हासिल कर पहाड़ की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गईं। परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए उन्होंने अपनी खाली पड़ी 17 नाली (36720 वर्ग फीट) भूमि पर खुद हल चलाकर उसे उपजाऊ बनाया। साथ ही सब्जी उत्पादन, पशुपालन व मशरूम उत्पादन के जरिये सफलता की नई दास्तान लिख डाली। उनके इसी प्रेरणादायी संघर्ष के लिए प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें इस वर्ष तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा गया।

रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम सौड़ उमरेला निवासी 23-वर्षीय बबीता के संघर्ष की शुरुआत बचपन से ही हो गई थी। बबीता तब 13 साल की रही होंगी, जब उनके पिता सुरेंद्र सिंह रावत ने अचानक तबीयत बिगड़ने पर बिस्तर पकड़ लिया। ऐसे में छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी उस अकेली जान पर आ गई, क्योंकि परिवार में सबसे बड़ी वही थीं। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और गाय पालने के साथ स्वयं खेतों में हल भी चलाने लगीं। सुबह खेतों में काम करने के बाद वह पढ़ाई के लिए पांच किमी दूर पैदल चलकर इंटर कालेज रुद्रप्रयाग पहुंचती थीं। इस दौरान वह बेचने के लिए दूध भी साथ लेकर आती थीं। इससे उनके परिवार का खर्चा चलता था।

दिन-रात मेहनत करके बबीता ने परिवार की जिम्मेदारी तो निभाई ही, पिता की दवाई और खुद का परास्नातक तक की पढ़ाई का खर्चा भी निकाला। इसके अलावा उन्होंने अपनी दो बड़ी बहनों की शादी भी कराई। धीरे-धीरे संघर्ष रंग लाया तो बबीता ने सब्जियां उगानी भी शुरू कर दी और बीते दो साल से वह उपलब्ध सीमित संसाधनों में मशरूम का उत्पादन कर रही हैं। इससे उन्हें प्रतिमाह आठ से दस हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।

धरातल पर उतारा आत्मनिर्भरता का माडल

बबीता ने लाकडाउन के दौरान भी मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैंगन, गोभी आदि सब्जियों का उत्पादन कर आत्मनिर्भरता के माडल को धरातल पर उतारा। अब वह गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वरोजगार के प्रति जागरूक करने का काम कर रही हैं। उनसे प्रेरित होकर अन्य महिलाएं भी व्यवसायिक खेती के प्रति अग्रसर हो रही हैं।


रुद्रप्रयाग व तिलवाड़ा में ही हो जाती है खपत

बबीता की मां गृहणी हैं, जबकि तीन छोटी बहनें व भाई पढ़ाई कर रहे हैं। वह बताती हैं कि खेती के कार्य में छोटी बहन उनकी मदद करती है। फिलहाल उनके उत्पादों की खपत जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग व तिलवाड़ा बजार में ही हो जाती है।

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