उत्तराखंड की राजनती में नए मुख्यमंत्री के सामने होंगी ये बड़ी चुनौतियां, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड की राजनीती में अब अगले मुख्यमंत्री का ताज किसके सिर सजेगा, इसे लेकर बुधवार को होने वाली भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में तस्वीर साफ हो जाएगी, मगर सरकार के नए मुखिया की राह आसान नहीं होगी।



उत्तराखंड की राजनीती में पिछले कुछ दिनों से चले आ रहे सियासी भूचाल थम गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया है।  इसके बाद अब अगले मुख्यमंत्री का ताज किसके सिर सजेगा, इसे लेकर बुधवार को होने वाली भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में तस्वीर साफ हो जाएगी, मगर सरकार के नए मुखिया की राह आसान नहीं होगी। त्रिवेंद्र सरकार का यश-अपयश तो उन्हें मिलेगा ही, साथ ही पहाड़ सरीखी चुनौतियों से भी दो-चार होना पड़ेगा। पार्टी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरना है। जाहिर है कि नए मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो सबको साथ लेकर चलने की रहेगी। 

भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया। अब 2022 में होने वाले चुनावी समर में भी उसके सामने ऐसा ही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। हालांकि, सांगठनिक रूप से भाजपा की जमीनी पकड़ बूथ स्तर तक है, मगर अब वह मुख्यमंत्री के रूप में नए चेहरे के रूप में जनता के बीच जाएगी। ऐसे में नए मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। यद्यपि, 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' भाजपा का मूलमंत्र है, मगर नए मुखिया को इस कसौटी पर खरा उतरने की सबसे बड़ी चुनौती है। मंत्रिमंडल के सहयोगियों से लेकर विधायकों, दायित्वधारियों, पार्टी कार्यकर्त्ताओं तक का भरोसा जीतने में उनके कौशल की परीक्षा होगी। 

मंत्रिमंडल में संतुलन साधने की चुनौती भी नए मुख्यमंत्री के सामने रहेगी। त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल में गढ़वाल मंडल से मुख्यमंत्री समेत छह मंत्री और कुमाऊं मंडल से चार मंत्री रखे गए थे। ऐसे में नए मुखिया के मंत्रिमंडल में दोनों मंडलों को तवज्जो देने की चुनौती भी रहेगी। इस पर भी सभी नजर रहेगी कि क्या सभी मंत्री पद भरे जाएंगे या फिर कुछ रिक्त रखे जाएंगे।  कोरोना संकट में साये में हो रहे कुंभ में व्यवस्थाएं चाक-चौबंद करने के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने की चुनौती होगी तो वहीं भीड़ नियंत्रण को प्रभावी कदम उठाने की भी। 

कोरोनाकाल के बाद पहली बार चारधाम यात्रा मई से शुरू होनी है। इसके लिए अभी से व्यवस्थाएं दुरुस्त करने की चुनौती भी सामने रहेगी। अब क्योंकि यह चुनावी साल है तो अब तक चल रही योजनाओं की गति बढ़ाने के साथ ही नई योजनाओं के चयन को लेकर भी नए मुखिया को खास सतर्कता बरतनी पड़ेगी। केंद्र सरकार के सहयोग से चल रही योजनाओं की रफ्तार न सिर्फ बढ़ानी होगी, बल्कि नई योजनाएं भी खींचनी होंगी। यानी डबल इंजन के दम को प्रदर्शित भी करने की चुनौती उनके सामने होगी। 


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